Saturday, September 13, 2008

MahaYogi Baba gorakshanath

ना कोई बारू , ना कोई बँदर, चेत मछँदर,

आप तरावो आप समँदर, चेत मछँदर

निरखे तु वो तो है निँदर, चेत मछँदर चेत !

धूनी धाखे है अँदर, चेत मछँदर

कामरूपिणी देखे दुनिया देखे रूप अपार

सुपना जग लागे अति प्यारा चेत मछँदर !

सूने शिखर के आगे आगे शिखर आपनो,

छोड छटकते काल कँदर , चेत मछँदर !

साँस अरु उसाँस चला कर देखो आगे,

अहालक आया जगँदर, चेत मछँदर !

देख दीखावा, सब है, धूर की ढेरी,

ढलता सूरज, ढलता चँदा, चेत मछँदर !

चढो चाखडी, पवन पाँवडी,जय गिरनारी,

क्या है मेरु, क्या है मँदर, चेत मछँदर !

गोरख आया ! आँगन आँगन अलख जगाया, गोरख आया!

जागो हे जननी के जाये, गोरख आया !

भीतर आके धूम मचाया, गोरख आया !

आदशबाद मृदँग बजाया, गोरख आया !

जटाजूट जागी झटकाया, गोरख आया !

नजर सधी अरु, बिखरी माया, गोरख आया !

नाभि कँवरकी खुली पाँखुरी, धीरे, धीरे,

भोर भई, भैरव सूर गाया, गोरख आया !

एक घरी मेँ रुकी साँस ते अटक्य चरखो,

करम धरमकी सिमटी काया, गोरख आया !

गगन घटामेँ एक कडाको, बिजुरी हुलसी,

घिर आयी गिरनारी छाया, गोरख आया !

लगी लै, लैलीन हुए, सब खो गई खलकत,

बिन माँगे मुक्ताफल पाया, गोरख आया !

"बिनु गुरु पन्थ न पाईए भूलै से जो भेँट,

जोगी सिध्ध होइ तब, जब गोरख से हौँ भेँट

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